ख़ुदकशी की एक ख़बर पढ़कर...
कोई यूं ही तो मौत को गले नहीं लगा लेता... कितनी अज़ीयत झेली होगी उसने, जो उसे अपनी ज़िन्दगी से मौत भली लगी...
जब कभी
अख़बार में पढ़ती हूं
खु़दकशी की कोई ख़बर
तो
अकसर यह
सोचने लगती हूं
क्या कभी ऐसा होगा
मरने वाले अमुक की जगह
मेरा नाम लिखा होगा
और
मौत की वजह नामालूम होगी...
-फ़िरदौस ख़ान

भावो को संजोये रचना......
जवाब देंहटाएं