सोमवार, अगस्त 30, 2010

इश्क़ की नज़्म...


मैं
उम्र के काग़ज़ पर
इश्क़ की नज़्म लिखती रही
और
वक़्त गुज़रता गया
मौसम-दर-मौसम
ज़िन्दगी की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान


10 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त ऐसे ही गुजर जाता है
    कब कैसे पता भी नही चलता
    बस खाली पन्ने हाथे मे
    रह जाते हैं बेनूर से
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  2. उम्र के क़ाग़ज़ पर...
    इश्क़ की नज़्म...
    वक़्त का
    मौसम दर मौसम
    ज़िन्दगी की तरह गुज़रना...
    वाह...बहुत ख़ूब....मुबारकबाद...

    लेकिन
    ये अल्फ़ाज़ कुछ कम नहीं है?

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  3. चंद लाइनों में कह दी पूरी किताब की बातें. बहुत सुन्दर भाव और शब्द.

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  4. behad khoobsoorat nazm !

    अच्छी रचना!!!!!!!!!!!!! क्या अंदाज़ है बहुत खूब

    रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकानाएं !
    समय हो तो अवश्य पढ़ें यानी जब तक जियेंगे यहीं रहेंगे !
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_23.html

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  5. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  6. रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने! शानदार पोस्ट!

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  7. बहुत खूब ...
    इश्क की नज़्म भी
    होती है तभी पूरी
    जब उम्र का कागज
    हो जाता है खत्म ..

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