मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे...




 ग़ज़ल
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख़्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

ज़िन्दगी एक जज़ीरा है तमन्नाओं का
धूप उल्फ़त की यही बात बताती है मुझे

हर तरफ़ मेरे मसाइल के शरार बरपा हैं
जुस्तजू अब्र की हर लम्हा बुलाती है मुझे

मैं संवरने की तमन्ना में बिखरती ही गई
आंधियां बनके हवा ऐसे सताती है मुझे

जब से क़िस्मत का मेरी रूठ गया है सूरज
तीरगी वक़्त की हर रोज़ डराती है मुझे

आलमे-हिज्र में 'फ़िरदौस' खो गई होती
चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे
-फ़िरदौस ख़ान

16 टिप्‍पणियां:

  1. wow bahut sundar gazal

    rat bhar dard ke jangal me gumati he mujhe


    shekharkumawat

    http://kavyawani.blogspot.com/

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  2. वाह बहुत बेहतरीन खाश कर ये लायने दिल को छू गयी
    मै सवंरने की तमन्ना में बिखरती ही गई ,,,
    आंधिया बन के हवा यैसे सताती है मुझे ,,
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  3. दर्द का जंगल जब उजाला और किनारा देखेगा तो चमक बढ जायेगी
    खूबसूरत रचना, खूबसूरत खयाल, खूबसूरत एहसास

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  4. agar kuchh kathin lafzon ke maayne bhi sath me den to naye logon ke liye samajhne me aasani rahegi. khair mujhe to pasand aayi gazal sivaye teergee ke matlab ke lekin bhaav se samajh liya.

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  5. ...चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे.

    बहुत खूब!

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  6. रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
    याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे
    ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
    उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

    लाजवाब ग़ज़ल

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  7. बहुत खूबसूरत लब्जों से नवाज़ा है
    प्रशंसनीय

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  8. woh lines khoobsurat rahi - main sanwarne ki tammanna me bikharti hi gai! baki to routine hai!

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  9. बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक रचना. आभार.

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  10. गज़ल बहुत अच्छी लगी आपकी।
    और जिन लोगों के बारे में आप बात कर रही हैं, ये नहीं जानते हैं कि अपनी हरकतों के कारण अपने समाज की छवि बिगाड़ ही रहे हैं।

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  11. चांदनी रोज रफ़ाकत की बचाती है मुझे ...
    वाह ...
    यही विश्वास बना रहे ...सब मुशिकलें आसान होंगी ...!!

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