मौसम दहक रहा है...
आसमान से
आग बरसाती
सूरज की तेज़ किरणें...
बदन को
और झुलसाते
लू के गरम झोंके...
गुलमोहर की
शाखों पर दहकते
फूलों के सुर्ख़ गुच्छे...
सूनी गलियों में
बंजारन ख्वाहिशों-सी
भटकती आवारा दोपहरें...
दूधिया चांदनी में
मोगरा-सी महकती
सुलगती रातें...
मौसम दहक रहा है...
-फ़िरदौस ख़ान
मौसम वाकई दहक रहा है
जवाब देंहटाएंसूरज की गर्मी से कम पर ---
सुन्दर रचना
सुंदर कविता है।
जवाब देंहटाएंपर इस दहकते मौसम में और भी बहुत कुछ है जो छूट गया है।
bahut achchhe shabd chitra
जवाब देंहटाएंbahut achi nazm hai likhte raho
जवाब देंहटाएंफ़िरदौस.....यह कविता बहुत अच्छी लगी..... आपने शब्दों से बहुत अच्छे से गूंथा है.....
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंhamesha kee tarah ek aur sunder rachana..............
जवाब देंहटाएंdudhiya chaandni me
जवाब देंहटाएंmogra si mehkati
sulagti raate,
or
mosam bhi dahak raha hai!
garmi ke siwaay bahut kuchh or bhi bataati aap ki ye rachna!
kunwar ji,
सूनी गलियों में...बजारन ख़्वाहिशों सी
जवाब देंहटाएंभटकती आवारा दोपहरें.............
बहुत खूब.....
बस ऐसे ही लिखते रहें......
बहुत खूब फिरदौस जी ! बहुत ही सुन्दर भाव और बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ! आपकी शैली मन मोह गयी !
जवाब देंहटाएंhttp://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
लू , गुलमोहर , सूनी सड़के ...सुलगती रातें ...
जवाब देंहटाएंमौसम के दहकने का और क्या प्रमाण चाहिए ...!!
सुन्दर अभिव्यक्ति ...!!
मौसम में तो लग रहा है कि दावानल उतर आया है। मनुष्य का सारा गुस्सा ही सूरज में समा गया है। अच्छी कविता, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं।
जवाब देंहटाएंnice abhivykti..
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