शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010

मौसम दहक रहा है...

मौसम दहक रहा है...

आसमान से
आग बरसाती
सूरज की तेज़ किरणें...

बदन को
और झुलसाते
लू के गरम झोंके...

गुलमोहर की
शाखों पर दहकते
फूलों के सुर्ख़ गुच्छे...

सूनी गलियों में
बंजारन ख्वाहिशों-सी
भटकती आवारा दोपहरें...

दूधिया चांदनी में
मोगरा-सी महकती
सुलगती रातें...
मौसम दहक रहा है...
-फ़िरदौस ख़ान

14 टिप्‍पणियां:

  1. मौसम वाकई दहक रहा है
    सूरज की गर्मी से कम पर ---
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर कविता है।
    पर इस दहकते मौसम में और भी बहुत कुछ है जो छूट गया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. फ़िरदौस.....यह कविता बहुत अच्छी लगी..... आपने शब्दों से बहुत अच्छे से गूंथा है.....

    जवाब देंहटाएं
  4. dudhiya chaandni me
    mogra si mehkati
    sulagti raate,
    or
    mosam bhi dahak raha hai!
    garmi ke siwaay bahut kuchh or bhi bataati aap ki ye rachna!

    kunwar ji,

    जवाब देंहटाएं
  5. सूनी गलियों में...बजारन ख़्वाहिशों सी
    भटकती आवारा दोपहरें.............
    बहुत खूब.....
    बस ऐसे ही लिखते रहें......

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब फिरदौस जी ! बहुत ही सुन्दर भाव और बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ! आपकी शैली मन मोह गयी !
    http://sudhinama.blogspot.com
    http://sadhanavaid.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  7. लू , गुलमोहर , सूनी सड़के ...सुलगती रातें ...
    मौसम के दहकने का और क्या प्रमाण चाहिए ...!!

    सुन्दर अभिव्यक्ति ...!!

    जवाब देंहटाएं
  8. मौसम में तो लग रहा है कि दावानल उतर आया है। मनुष्‍य का सारा गुस्‍सा ही सूरज में समा गया है। अच्‍छी कविता, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं।

    जवाब देंहटाएं