मन से उगते हैं अग्निगंधा के फूल...


हमारा प्यारा भाई है अरुण...यानी अरुण सिंह क्रांति...वह जितना अच्छा इंसान है, उतना ही उम्दा लेखक भी है...हम समझते हैं कि किसी भी इंसान को अच्छा लेखक, अच्छा कवि,  अच्छा कलाकार (या अच्छा कोई और) होने से पहले एक अच्छा इंसान होना चाहिए...क्योंकि एक अच्छा इंसान ही अच्छा लेखक, अच्छा कवि, अच्छा कलाकार (या अच्छा कोई और) हो सकता है...हमें अपने भाई अरुण पर नाज़ है...ज़िन्दगी में ऐसे बहुत कम लोग मिलते हैं, जिन पर हम गर्व कर सकें...भाई अरुण में बहुत सी ख़ूबियां हैं... हाल में अरुण की एक किताब प्रकाशित हुई है...इस किताब की भूमिका हमने ही लिखी है...और इस किताब की समीक्षा भी लिखी है...           

उषाकाल का केसरिया आकाश. श्वेत रंग के बाड़े से टेक लगाए एक हल्का आसमानी रंग का पहिया. बाड़े के अंदर हरी, मखमली, कुछ पंक-युक्त घास. एक सूखा वृक्ष, जिससे झड़े आग्नेय-वर्णी पुष्पों को चुनकर टोकरी में एकत्रित करता एक बालक. युवा कवि अरुण सिंह क्रांति के पहले काव्य-संग्रह अग्निगंधा के फूल का ऐसा शानदार आवरण बरबस ही पुस्तक को उठाकर उसके पृष्ठ टटोलने को बाध्य करता है.
कवि के पिता, माता और गुरु के चरणों में समर्पित इस काव्य संग्रह की प्रस्तावना में कवि ने अपने अंदर एक कवि के जन्म लेने का कारण मातृ प्रेरणा बताया है. कवि के मन में लीक से हटकर कुछ करने की भावना रही. इसे उसने बखूबी अंजाम भी दिया है.
अरुण सिंह क्रांति का परिचय दिया जाए, तो वह मन से एक कवि, शौक़ से एक लेखक, पेशे से पत्रकार, परंपरा से ज्योतिषी, अनुवांशिकता से गणित के कोच और आत्मा से एक क्रांतिकारी हैं.
प्रस्तुत काव्य-संग्रह में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं, जो अपने आप में विरली हैं. पहला तो कविताओं का एक विशेष क्रम है. कवि ने पुस्तक का आरंभ मां से किया है, और उपसंहार भी मां से ही किया है. कविताओं की क्रमश: योजना में पहले मां, फ़िर ज्ञान की देवी सरस्वती, फ़िर गुरु, फिर राष्ट्र और समाज, फ़िर नारी-शक्ति, फ़िर एक ऐतिहासिक प्रसंग को स्पर्श करते हुए कवि अपने हृदय के स्पंदनों को काव्य-रूप देता हुआ, प्रेम की हर अभिव्यक्ति को शब्द देता है. कवि सौंदर्य, मन के मंथन, कवि होने का गर्व, आत्म-आलोचना, एक मृत्यु पत्र लिखने के बाद अपनी कविताओं में अग्निगंधा का मर्म बताते हुए फ़िर से मां तक पहुंच जाता है. मां से मां तक की यह यात्रा देखकर ऐसा लगता है, मानो कवि अपने अंतर-ब्रह्मांड की प्रदक्षिणा कर फ़िर से अपने मूल पर, अपने जीवन-स्त्रोत पर लौट आया हो.
दूसरी विशेषता है, हर कविता के साथ संलग्न एक प्रासंगिक रेखाचित्र. विभु दत्ता द्वारा बनाए ये रेखाचित्र भी जीवंत लगते हैं और अपने-अपने काव्य-विशेष का पूरा मर्म समेटे जान पड़ते हैं.
तीसरी विशेषता है, हर कविता के अंत में बने छोटे-छोटे चिन्ह इन चिन्हों के प्रयोग से कवि में छिपी वैज्ञानिकता का आभास होता है. हर चिन्ह अपनी कविता का मूल-भाव स्पष्ट करता है.
चौथी विशेषता है, पुस्तक का शीर्षक, जिसमें अग्निगंधा शब्द का प्रयोग किया गया है. अग्निगंधा-काव्य को समझाते हुए कवि ने एक कविता में लिखा है-
काव्य नहीं ये मन की
झंझावात से उड़ती धूल है
द्रव्य-भावना नहीं
ये लौह-मनस के चुभते त्रिशूल हैं
न समझो इन शब्दों को
भावुक रचना, श्रृंगार-सी
इन शब्दों में मेरे मन की
हर चाह, दाह और आह बसी
मथित-मन में ये महकते
अग्निगंधा फूल हैं
दग्ध-दिल के ये दहकते
अग्निगंधा फूल हैं
पुस्तक के शीर्षक के संबंध में कवि अरुण ने गूढ़ दार्शनिक भाषा में स्पष्ट किया है- जब भी मन में कोई सामयिक या आकस्मिक अंधेरा व्याप्त होता है, जिसमें सभी मार्ग दिखने बंद हो जाते हैं और बाह्य-जगत का कोई भी पदार्थ वहां रोशनी नहीं कर पाता, तो मैं स्वयं का ही मन जलाता हूं, जिससे एक अग्निगंधा का वृक्ष पनपता है, जिसके प्रकाश और सुगंध लिए फूलभभविषय के लिए मेरे लक्ष्य की ओर जाने वाले मार्गों को प्रकाशयुक्त और सुगंधित बनाते हैं और जिसकी लकड़ी दीर्घ-काल तक मार्गों को प्रकाशित बनाए रखने के लिए जलाने के काम भी आती है. जब ये पुष्प और लकड़ी समाप्त या कम होने लगती है, तो मैं फिर से मन को जलाता हूं.
पांचवीं और महत्वपूर्ण विशेषता है, कवि कीभभाषा-शैली और विषय की विविधता. जहां एक ओर कवि ने संस्कृत-निष्ठ हिंदी का छंदबद्ध प्रयोग किया है, वहीं कई स्थानों पर एक उन्मुक्त खड़ी बोली का भी सुंदर तालमेल देखने को मिलता है. अरुण की कविताओं में श्रृंगार रस, करुण रस, रौद्र रस, वीर रस व शांत रस का अद्‌भुत संयोग है. रचनाएं विभिन्न प्रतीकों और लगभग सभी प्रमुख अलंकारों से परिपूर्ण हैं. कहीं उच्चकोटि का नाद-सौंदर्य, तो कहीं मनभभावन शब्द-सौंदर्य दिखता है और विषय की विविधता भी शानदार है. कवि ने एक ही पुस्तक में किसी शहीद के प्रेम पत्र से लेकर शहीदों की राख के शोधन, देशभक्ति का व्यवसायीकरण, जलियावाला बाग की आत्म वेदना, आतंकवाद की आलोचना, सांप्रदायिक-सद्‌भाव, देश के विभाजन का दर्द, प्रतिभा-पलायन की विडंबना, सत्य की विजय का विश्वास, एक नए समाज को बनाने का स्वप्न, नारी-शक्ति का गुणगान, रावण की आत्मग्लानि, प्रेमिका से प्रणय-निवेदन, विरह-वेदना, वसंत और फाग के सौंदर्य से लेकर अपने मन में छिपे देवत्व और पशुत्व, दोनों की विवेचना को स्थान दिया है.
पुस्तक के मूल-भाव के बारे में प्रकाशक का कहना है-कवि की रचनाओं में मुख्य सरोकार हैं, मातृभक्ति, राष्ट्रीयता, प्रेम, मानस-मंथन और आत्मबोध. यह भी कहा जा सकता है कि ये उनकी काव्य-सृष्टि के पंच-तत्त्व हैं. कहीं स्वतंत्र रूप में, तो कहीं सम्मिलित होकर ये तत्व उनकी रचनाओं को अलंकृत करते हैं. ये शब्द ही अपने आप में कवि की रचनाओं में उत्कृष्ट विविधता के प्रमाण हैं. बेशक, यह पुस्तक शब्दों के इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर कविताओं का एक ऐसा संग्रह है, जिसे कोई भी बार-बार पढ़ना चाहेगा और जितना पढ़ता जाएगा, उतने ही नए अर्थ और भाव सामने आते जाएंगे.

कृति : अग्निगंधा के फूल
विधा : कविता
कवि : अरुण सिंह क्रांति
प्रकाशन : सिनमन टील प्रकाशन, गोवा
मूल्य : 250 रुपये
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